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Showing posts from August, 2011

आँखें ये जो मूँद ली हैं

कुछ सपनो की खातिर ही तो आँखें यूं जो मूँद ली है | मानो बंद नयनो में अब रौशनी की इक किरण दिखी है, अब जा कर सब साफ़ दिखा है हसरतो को आधार मिला है| कुछ सपनो की खातिर ही तो आँखें ये जो मूँद ली है | एहसास कुछ पा जाने का खोयी हुयी एक आस मिली है, दिल के भीतर अंतरमन में एक छोटी सी ज्योत जली है, पत्थरो के ऊपर ही से इक नयी सी राह दिखी है| आँखें तो अब आज खुली हैं स्वास में इक आग जली है, कुछ सपनो की खातिर ही तो आँखें यूं जो मूँद ली है | - प्रिया सिंह