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Showing posts from February, 2014

तेरी याद

आज बैठे तो कुछ और सोचा तुम्हे यूँ तो मन की हर छवि में तुम्हे उतरते देखा है चाय की चुस्की के साथ तुम्हे याद करके हर शाम को रात में बदलते देखा है अँधेरे ने जब जब ठण्ड की चादर ओढ़ी है अलाव कि गर्माहट में तुम्हारे स्पर्श का एहसास हो जाता है लपट की रौशनी में खो कर देखा जब भी तुम्हे तुम्हारा चेहरा मेरे मन का आईना सा लगता है इस खुश्क से मौसम और नंगी सर्द हवा में तुम्हारी याद का लम्हा कुछ थमा सा लगता है आदत हो जाती है वक़्त के साथ धीरे धीरे पर तुमसे दूरी का ख्याल आज भी अंजाना सा लगता है रास्ते पर ताकते हुए मैंने अपनी खिड़की से सन्नाटे को चीरती हर आवाज़ पर दिल को सम्भाला है एक झलक की ताक लगाये बैठी हूँ मैं कब से वो कहते हैं दूरियों का ही तो ज़माना है