आज बैठे तो कुछ और सोचा तुम्हे
यूँ तो मन की हर छवि में तुम्हे उतरते देखा है
चाय की चुस्की के साथ तुम्हे याद करके
हर शाम को रात में बदलते देखा है
अँधेरे ने जब जब ठण्ड की चादर ओढ़ी है
अलाव कि गर्माहट में तुम्हारे स्पर्श का एहसास हो जाता है
लपट की रौशनी में खो कर देखा जब भी तुम्हे
तुम्हारा चेहरा मेरे मन का आईना सा लगता है
इस खुश्क से मौसम और नंगी सर्द हवा में
तुम्हारी याद का लम्हा कुछ थमा सा लगता है
आदत हो जाती है वक़्त के साथ धीरे धीरे
पर तुमसे दूरी का ख्याल आज भी अंजाना सा लगता है
रास्ते पर ताकते हुए मैंने अपनी खिड़की से
सन्नाटे को चीरती हर आवाज़ पर दिल को सम्भाला है
एक झलक की ताक लगाये बैठी हूँ मैं कब से
वो कहते हैं दूरियों का ही तो ज़माना है
यूँ तो मन की हर छवि में तुम्हे उतरते देखा है
चाय की चुस्की के साथ तुम्हे याद करके
हर शाम को रात में बदलते देखा है
अँधेरे ने जब जब ठण्ड की चादर ओढ़ी है
अलाव कि गर्माहट में तुम्हारे स्पर्श का एहसास हो जाता है
लपट की रौशनी में खो कर देखा जब भी तुम्हे
तुम्हारा चेहरा मेरे मन का आईना सा लगता है
इस खुश्क से मौसम और नंगी सर्द हवा में
तुम्हारी याद का लम्हा कुछ थमा सा लगता है
आदत हो जाती है वक़्त के साथ धीरे धीरे
पर तुमसे दूरी का ख्याल आज भी अंजाना सा लगता है
रास्ते पर ताकते हुए मैंने अपनी खिड़की से
सन्नाटे को चीरती हर आवाज़ पर दिल को सम्भाला है
एक झलक की ताक लगाये बैठी हूँ मैं कब से
वो कहते हैं दूरियों का ही तो ज़माना है
Comments
Stirring, amazing, brilliant!
Could not have been written without an overdose of emotion. Brilliant!