ज़िन्दगी क्या कहलाती है? इस प्रश्न के उत्तर को क्या स्वयं प्रश्न को समझ पाना किसके लिए संभव है? गहनता को समेटे सब से लिपटी हुई फिर भी उस गहराई को समझना किसके लिए संभव है? वो भावनाएं को संचित किये असंख्य एहसास करवाती है उन एहसासों को समझना किसके लिए संभव है? सभी से प्रश्नों को समेट ते समय के साथ उत्तर तो देती है पर उस हर एक उत्तर को समझ पाना किसके लिए संभव है? विषाद और निशीथ की अवधि सभी में निश्चितता से वितरित करती, पर मनुष्य इस गूढ़ सी बात को समझ पाए कहाँ तक संभव है? दुःख की उदासी ,सुख की मुदिता की कैसे वृद्धि करती है, हर परिस्थिति में समझ पाना कहाँ तक संभव है? इस ज़िन्दगी के अनेक रूपों को उसके सांचे को समझ पाना किसके लिए संभव है? कहाँ तक संभव है? - प्रिया सिंह
Have you ever paused your life, your thoughts, to see around, to put things into perspective?
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